पाप और पुण्य : स्वामी विवेकानंद का एक प्रेरक प्रसंग



ये घटना है सन 1899 की। तब कोलकाता में प्लेग फैला हुआ था। शायद ही कोई ऐसा घर था जहां ये बीमारी ना पहुंची हो। ऐसी संकट की घड़ी में भी स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों के साथ पीड़ितों की सेवा में लगे हुए थे। वे खुद शहर की गलियां और बाजार साफ करते थे और जहां भी उन्हें प्लेग का मरीज दिखता उसे दवा देकर उसका उपचार करते थे।

उसी दौरान कुछ लोग स्वामीजी के पास आए और उनके ​मुखिया ने कहा — 'स्वामीजी धरती पर पाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए प्लेग की महामारी के रूप में भगवान लोगों को दण्ड दे रहे हैं परंतु आप ऐसे लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करके आप भगवान के काम में बाधा डाल रहे हैं।

समूह के मुखिया की बातें सुनकर स्वामीजी ने कहा : 'सबसे पहले तो मैं आप सब विद्वानों को प्रणाम करता हूं' इसके बाद उन्होंने कहा — 'आप ये सब तो जानते ही होंगे कि मनुष्य इस जीवन में अपने कर्मों के कारण सुख और दुख पाता है। ऐसे में जो व्यक्ति कष्ट से पीड़ित होकर तड़प रहा है, यदि दूसरा व्यक्ति उसके घावों पर मरहम लगा देता है तो वह स्वयं ही पुण्य का अधिकारी हो जाता है। अब यदि आपके अनुसार प्लेग से पीड़ित लोग पाप के भागी हैं तो जो कार्यकर्ता इनकी मदद कर रहे हैं वे पुण्य के भागी बन रहे हैं। बताईये इस संदर्भ में आपका क्या कहना है?' उनकी बात सुनकर वे सब लोग चुपचाप वहां से चले गए।

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